Vaastu Tips

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वास्तु टिप्स


·   बेडरूम में पुरानी और बेकार वस्तुओं का संग्रह न करें। इससे वातावरण में नकारात्मकता आती है। साथ ही, ऐसे चीजों से टायफायड और मलेरिया जैसी बीमारियों के वायरस भी जन्म लेते हैं।


·      हमेशा फैक्ट्री का मुख्यद्वार पूर्व-उत्तर के मध्य में रखना चाहिए।


·    फैकिट्रयों के निर्माण में यह ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व-उत्तर का भाग सदैव दक्षिण-पशिचम के भाग से नीचा होना चाहिए।


·     यह ध्यान रखना चाहिए कि कच्चा माल दक्षिण-पशिचम दिशा में होना चाहिए एवं अनितम तैयार माल पूर्व-उत्तर में दिशा में रखना चाहिए।


·      फैकिट्रयों में कर्मचारियों के लिए उत्तर-पशिचम दिशा का चयन करना चाहिए।


·      वास्तु शासित्रयों के अनुसार चुंबकीय उत्तर क्षेत्र कुबेर का स्थान माना जाता है, जो धन वृद्धि के लिए शुभ है। यदि कोर्इ व्यापारिक वार्ता, परामर्श, लेन-देन या कोर्इ बड़ा सौदा करें तो मुख उत्तर की ओर रखें।


·     घर में बनने वाले भोजन में से प्रत्येक प्रकार का थोड़ा-थोड़ा पदार्थ एक अलग प्लेट मेें भोजन बनाने वाली महिला पहले निकालकर हाथ जोड़कर वास्तुदेव को समर्पित करे और फिर घर के अन्य सदस्यों को भोजन कराएं। ऐसा करने से वास्तु देवता उस घर पर सदैव प्रसन्न रहते हैं।


·     टूटी-फूटी मशीनों को न रखें। जितनी जल्दी हो सके कोर्इ भी टूटी हुर्इ अथवा विकृत मशीन को चाहे वह छोटी हो अथवा बड़ी, घर से बाहर कर देना चाहिए।


·     बेडरूम में भगवान के कैलेंडर या तस्वीरें या फिर धार्मिक आस्था से जुड़ी वस्तुएँ नहीें रखनी चाहिए। बेडरूम की दीवारों पर पोस्टर या तस्वीरें नहीं लगाएं तो अच्छा है। हाँ अगर आपका बहुत मन है, तो प्राकृतिक सौंदर्य दर्शाने वाली तस्वीर लगाएं। इससे मन को शांति मिलती है, पति-पत्नी में झगड़े नहीं होते।


·     रसोर्इ घर गलत स्थान पर हो तो अगिनकोण में एक बल्ब लगा दें और सुबह-शाम    अनिवार्य रूप से जलायें।


·    द्वार दोष और वेा दोष दूर करने के लिए शंख, सीप, समुद्र झाग, कौड़ी लाल  कपड़े में या मोली में बांधकर दरवाजे पर लटकाएं।


·     बीम के दोष को शांत करने के लिए बीम को सीलिंग टायल्स से ढंक दें। बीम के दोनों ओर बांस की बांसुरी लगाएं।


·     वास्तु के अनुसार अपनी पुस्तकें दक्षिण या पशिचम की तरह ही रखें।


·     अपने कमरे की उत्तर दीवार पर 4 इंच का काले रंग का चित्र गोल आकार में फ्रेम करवाकर लगवायें।


·      जब भी आप कोर्इ पेपर या साक्षात्कार पर जाएं तो हरे रंग के वस्त्र धारण करना आपके लिए लाभकारी रहेगा।


·     वास्तु शास्त्र के अनुसार बेडरूम की सबसे अच्छी सिथति घर के दक्षिण-पशिचम मे होती है क्योंकि इसका संबंध पृथ्वी तत्व से होता है, जो सिथर और निषिक्रय है। यह नींद के लिए सबसे शांतिपूर्ण और आरामदायक सिथतियां प्रदान करता है। मकान बहुमंजिला हो तो बेडरूम भूतल (ग्रांउंड फ्लोर) पर नहीं बनाना चाहिए क्योंकि यहां ऐसा लगेगा जैसे कोर्इ आपकी गतिविधियों पर नजर रख रहा है। बडे कमरों में से किसी एक कमरे को शयन कक्ष बनाना चाहिए।


·    सोते समय सिर का सिरहाना दक्षिण-पशिचम या दक्षिण दिशा की ओर होना  चाहिए,जिससे कि गहरी नींद आती है।


·     पति-पत्नी में प्रेम के लिए प्रेमी परिंदे का चित्र या मेडरिन बतख का जोड़ा रखें अथवा सपरिवार प्रसन्नचित मुद्रा वाला चित्र लगाएंं।


·     डायनिंग टेबल को प्रतिबिंबित करने वाला आर्इना आपके सदभाव व भाग्य में वृद्धि करता है, इसे लगाएं।


·     किराए के मकान में पलंग को इस प्रकार रखें कि सिरहाना दक्षिण दिशा में हो और पैर उत्तर दिशा में। अगर घर की बनावट इस तरह नहीं कि आप दक्षिण दिशा में सिरहाना रख सकें तो पशिचम दिशा में सिरहाना रखें। इससे मानसिक तनाव से बचेंगे तथा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।


·      स्टडी रूम और स्टडी टेबल दोनों की ही दिशा उत्तर या पूर्व में होनी चाहिए साथ ही किताबों की अलमारी और पढ़ते समय बच्चों का चेहरा भी उत्तर पूर्व में होना चाहिए।


·      स्टडी रूम के मध्य में सबसे ज्यादा ऊर्जा होती है इसलिए ध्यान रखे कि स्टडी रूम के मध्य भाग में कोर्इ भारी वस्तु न रखें। कोशिश करें कि यह क्षेत्र हमेशा खाली रहे।


·      बच्चों को पढ़ते समय कर्इ बार ध्यान भटक जाता है ऐसे में पैरेंटस को चाहिए कि स्टडी टेबल के सामने बगुले का चित्र रखें।


·      जब बच्चों का ध्यान भटक जाए तो वह एक मिनट तक बगुले की आंख देखे। यह प्रक्रिया उनमें एकाग्रता को बढ़ाती है।


·      पलकों के ऊपर आर्इलाइनर लगाएं। मस्कारा अवश्य इस्तेमाल करें।


·      गहरे आइशैडो न लगाएं। आंखों के नीचे गहरा मेकअप न करें।


·      सोते समय मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए क्योंकि मनुष्य के अंदर हीमोग्लोबीन में आयरन होता है। आयरन स्वयं ही चुंबकीय गुण रखता है।


·      यह चुंबकीय गुण पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड केे साथ मैच करने से ब्लड प्रेशर और ब्लड सकर्ुलेशन की बीमारियों से छुटकारा मिलता है।


·      ऐसा करने से सूर्य की लाल किरणें मिलने के कारण बच्चे की पढ़ार्इ की टेंडेंसी बढ़ती है और चीजों को जल्दी से कवर करता है।


·      मंगल दोष के कारण विवाह में विलंब हो रहा हो तो उसके कमरे के दरवाजे का रंग लाल अथवा गुलाबी रखना चाहिए।


·      विवाह योग्य युवक-युवती के कक्ष में कोर्इ खाली टंकी, बड़ा बर्तन बंद करके नहीं रखेंं अगर कोर्इ भारी वस्तु हो तो उसे भी हटा देंं


·      प्लाट की लंबार्इ उत्तर-दक्षिण दिशा की बजाय पूर्व-पशिचम दिशा में अधिक होना शुभ माना जाता है।


·      प्लाट या बिलिडंग में भारी सामान दक्षिण-पशिचम दिशा के कोने में रखा जाना चाहिए।
·      बड़ा प्लाट समद्धि का सूचक होता है बशर्तें उसमें सीवरेज या क्रेक नहीं होना चाहिए।


·      स्वस्थ व्यकित अचानक अस्वस्थ हो जाए तो, उस पर चिकित्सा का कोर्इ प्रभाव नहीं हो रहा, तो वह नजर दोष से ग्रसित हो सकता है।


·      एक साबूत नींबू के ऊपर काली स्याही से 307 लिख दें और उस व्यकित के ऊपर उल्टी तरफ से सात बार उतारें। इसे पश्चात उसी नींबू को चार भागों में इस प्रकार काटें कि वह नीचे से जुड़े रहेंं और फिर उसी नींबू को घर से बाहर किसी निर्जन स्थान पर फेंक दे।


·      पूजाघर के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान र्इशान कोण होता है। पूजागृह को पूर्व या उत्तर दिशा में स्थापित किया जा सकता है। पूजा करते समय हमारा मुख र्इशान, पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए। ऐसा संभव न होने पर किसी भी कमरे के र्इशान कोण में स्थापित करें।


·      पूजागृह रसोर्इ और शयन कक्ष में कदापि नहीं होना चाहिए।


·      पूजाघर में पीला या सफेद रंग करवाना ठीक रहता है।


·      पूजाघर के ऊपर पिरामिड होना चाहिए साथ ही ध्यान रखना चाहिए कि मंदिर के ऊपर कोर्इ सामान नहीं रखा हो।


·      पूजाघर में दो शिवलिंगा, दो शालिग्राम, दो शंख, तीन दुर्गा और तीन गणेश रखने का शास्त्रों में निषेध है।


·      यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर गणेश जी की प्रतिमा इस प्रकार लगाए कि दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे।


·      घर में तुलसी का पौघा उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में रखें और तुलसी का पौधा जमीन से कुछ ऊंचार्इ पर ही लगाना उचित है।


·      तुलसी के पौधे पर कलावा व लाल चुनिनयां आदि नहीं बांधनी चाहिए। तुलसी का पौधा अपने आप में पूर्ण मंदिर के समान माना जाता है।


·      बालकनी से हम प्रात:काल स्वच्छ वायु एवं सूर्य की प्राकृतिक ऊर्जा का आनंद ले सकते हैं। यदि भूखंड में बालकनी को वास्तु के अनुसार बनाया जाए तो हितकर व लाभप्रद परिणाम मिलते हैं।


·      यदि आपका भवन पूर्वमुखी हैं, तो बालकनी पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। ऐसे भवन में बालकनी पशिचम या दक्षिण दिशा में कदापि न बनाएं।


·      पशिचममुखी भवन में बालकनी को उत्तर या पशिचम की दिशा में बनाना शुभ माना जाता है।


·      दरवाजों को खोलने या बंद करते समय आवाज होना अशुभ माना गया है। भवन में सीढि़यां वास्तु नियम के अनुरूप बनानी चाहिए, सीढि़यां विषम संख्या (5, 7, 9) में होनी चाहिए।


·      आराधना स्थल पर देवी-देवताओं की प्रतिमा या मूर्तियां एक-दूसरे के आमने-सामने होनी चाहिए।


·      बहुमंजिले मकान में पूजा मंदिर निर्माण भूतल पर करें।


·      नवजात शिशुओं के लिए घर के पूरब एवं पूर्वोत्तर के कमरे सर्वश्रेष्ठ होते हैं। सोते समय बच्चे का सिर पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।


·      भवन निर्माण करने से पूर्व सर्वप्रथम यह सुनिशिचत करना आवश्यक है कि घर का आंगन कहां और कैसा रखा जाए, जिससे हमें पूरे घर में सकारात्मक उर्जा प्राप्त हो सके।


·      भवन में ब्रहम स्थान अथवा आंगन का होना शुभ माना जाता है क्योंकि जिससे हमें सूर्य का प्रकाश एवं हवा अधिक से अधिक मात्रा में मिल जाती है।


·      घर का आंगन मध्य में ऊंचा और चारों ओर नीचा हो तो शुभ माना जाता है लेकन मध्य में नीचा और चारों ओर ऊंचा हो तो, ऐसा आंगन धननाशक एवं परिवार में कलह उत्पन्न करता है।


·      घर की पशिचम दिशा का क्षेत्र संतान से संबंधित माना जाता है। साथ ही यह क्षेत्र रचनात्मक और सृजनात्मक कार्यों से भी संबंधित होता है। यह क्षेत्र सभी प्रकार की वस्तुएं सजाने के लिए भी उत्तम होता है। इस क्षेत्र को सक्रिय करने के लि निम्न प्रकार के उपाय हैं।


·      इस क्षेत्र में बच्चों की तस्वीरें लगाने एवं बच्चों की पहनने वाली वस्तुएं रखने से यह क्षेत्र गतिशील हो जाता है।


·      इस क्षेत्र में क्रिस्टल बाल रखने से भी यह स्थान सक्रिय हो शुभ फल देता है।


·      शौचालय का दरवाजा हमेशा बंद रखना चाहिए।


·      शौचालय को कभी भी पूर्व या उतर की दीवार से सटा हुआ नहीं होना चाहिए।


·      मकान में शौचालय यदि गलत दिशा में बना है तो घर के अधिकतर सदस्यों को पेट खराब रहेगा एवं प्रगतिशीलता में बाधा आयेगी।


·      मोर पंख को सम्मोहन का प्रतीक माना गया है। घर में मोर पंख रखना प्राचीनकाल से ही बहुत शुभ माना जाता है।


·      घर के दक्षिणी-पूर्वी कोने में मोर का पंख लगाने से भी घर में बरकत बढ़ती है।


·      वास्तुशास्त्र के मुताबि पूर्व दिशा के प्रतिनिधि देवता सूर्य है। सूर्य पूर्व से ही उदित होता है। यह दिशा शुभारंभ ही दिशा है।


·      भवन के मुख्य द्वार को इसी दिशा में बनाने का सुझाव दिया जाता है। इसके पीछे दो तर्क हैं। पहला - दिशा के देवता सूर्य को सत्कार देना और दूसरा वैज्ञानिक तर्क यह है कि पूर्व में मुख्य द्वार होने से सूर्य की रोशनी व हवा की उपलब्धता भवन में पर्याप्त मात्रा में रहती है।


·      सुबह के सूरज की पैरा बैंगनी किरणें रात्रि के समय उत्पन्न होनेवाले सूक्ष्म जीवाणुओं को खत्म करके घर को ऊर्जावान बनाएं रखती हैं।


·      घर के अहाते में कंटीले या जहरीले पेड जैसे बबूल, खेजड़ी आदि नहीं होने चाहिए, अन्यथा असुरक्षा का भय बना रहेगा।


·      कहीं जाने हेतु घर से रात्रि या दिन के ठीक 12 बजे न निकलें।


·      किसी महत्वपूर्ण काम हेतु दही खाकर या मछली का दर्शन कर घर से निकलें।


·      घर में या घर के बाहर नाली में पानी जमा नहीं रहने दें।


·      घर में मकड़ी का जाल नहीं लगने दें, अन्यथा धन की हानि होगी।


·      रात को सोते समय ध्यान दें कि आपका सिर कभी भी उत्तर एवं पैर दक्षिण दिशा में न हो अन्यथा सिरदर्द और अनिद्रा जैसे समस्याएं हो सकती है।


·      गर्भवती सित्रयों को दक्षिण-पशिचम दिशा सिथत कमरे का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसी अवस्था में पूर्वात्तर दिशा या र्इशन कोण में बेडरूम नहीं रखना चाहि। इसके कारण गर्भाशय संबंधी समस्याएं हो सकती है।


·      घर में किसी प्रकार के वास्तु दोष से बचने के लिए पांच तुलसी के पौधे लगाएं व नियमित उसकी सेवा करें।


·      घर की छत पर तुलसी का पौधा रखने से बिजली गिरने का भय नहीं रहता है।


·      शौचालय बनाते वक्त काफी सावधानी रखना चाहिए, नहीं तो ये हमारी सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देते है और हमारे जीवन में शुभता की कमी आने से मन अशांत महसूस करता है।


·      शौचालय को ऐसी जगह बनाएं जहां से साकारात्मक ऊर्जा न आती हो व ऐसा स्थान चुनें जो खराब ऊर्जा वाला क्षेत्र हो।


·      घर के दरवाजे के सामने शौचालय का दरवाजा नहीं होना चाहिए, ऐसी सिज्ञथति होने से उस घर में हानिकारक ऊर्जा का संचार होगा।


·     सोते वक्त शौचालय का द्वार आपके मुख की ओर नहीं होना चाहिए।


·      शौचालय अलग-अलग न बनवाते हुए एक के ऊपर एक होना चाहिए।


·      र्इशान कोण में कभी भी शौचालय नहीं होना चाहिए, नहीं तो ऐसा शौचालय सदैव हानिकारक ही रहता है।


·      शौचालय का सही स्थान दक्षिण-पशिचम में हो या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। वैसे पशिचम दिशा में इसके लिए ठीक रहती है।


·      यदि कोर्इ मकान अर्धचंद्राकार घेरे में हो तो, ऐसी सिथति अशुभ फल देने वाली होती है।


·      ऐसे घर में रहने वाले व्यकितयों को आर्थिक विषमताओं एवं पारिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।


·      छोटी झाडि़यां मुख्यद्वार और अर्धचंद्राकार के मध्य में लगाने से शुभ फल मिलने लगते हैं।


·      घर में कभी-कभी नमक के पानी से पोंछा लगाना चाहिए। इससे नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है।


·      घर से निकलते समय माता-पिता को विधिवत (झुककर) प्रणाम करना चाहिए। इससे बृहस्पति और बुध ठीक होते हैं। इससे व्यकित के जटिल से जटिल काम बन जाते हैं।


·      यदि दुकान या आफिस में वास्तु दोष हो तो व्यापार-व्यवसाय में सफलता नहीं मिलती। किस दिशा में बैठकर आप लेन-देन आदि कार्य करते हैं, इसका प्रभाव भी व्यापार में पडता है।


·      भवन में सीढि़यां वास्तु नियम के अनुरूप बनानी चाहिए, सीढि़यां विषम संख्या (5,7,9) में होनी चाहिए।


·      छोटे बच्चों का बेडरूम पशिचम दिशा में बनाना चाहिए। लड़की का शयन कक्ष उत्तर-पशिचम में बनाएं, जबकि लड़के के लिए उत्तर एवं पूर्व दिशा में बेडरूम बनाएंंं।


·      बेडरूम का दरवाजा उत्तर या पूर्व दिशा में हो। संभव हो तो दरवाजा एक ही लगाएं।


·     घर में आंगन मध्य में ऊंचा तथा चारों ओर से नीचा होना चाहिए। यदि आपका आंगन वास्तु के अनुरूप न हो, तो उसे फौरन बताए गए तरीके से पूर्ण करवा लें। ध्यान रखें आंगन मध्य में नीचा व चारों ओर ऊंजा भूलकर भी न रखें।


·    कोर्इ भूखंड उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर विस्तृत हो तथा भवन का निर्माण उत्तरी भाग में हुआ हो तथा भूखंड का दक्षिणी भाग खाली पड़ा हो तो वास्तु में यह सिथति अत्यंत दोषपूर्ण होती है।


·      भवन के अंदर के कमरों का ढलान उत्तर दिशा की तरफ न हो। ऐसा हो जाने से भवन स्वामी हमेशा ऋणी रहता है।, र्इशन कोण की तरफर नाली न रखें। इससे खर्च बढ़ता है।


·     शौचालय का निर्माण पूर्वात्तर र्इशान कोण में न करेंं इससे सदा दरिद्रता बनी रहती है। शौचालय का निर्माण वायव्य दिशा में हो तो बेहतर होता है। कमरों में ज्यादा छिद्रों का ना होना आपको स्वस्थ और शांतिपूर्वक रखेगा।


·     वास्तु के शुभ या अशुभ परिणामों का असर, सिर्फ उस मकान में रहने वालों के जीवन पर ही पड़ता है। मकान किराये का हो, या स्वयं का, या फिर अन्य किसी के नाम पर रहे। यह बात वास्तु विषय के लिए अर्थहीन है। मकान के वास्तु-बल एवं वास्तु-दोष, अपने शुभ एवं अशुभ परिणाम उसे ही देंगे, जो उस मकान में रह रहे हैं।


·     भवन का मुख्य द्वार सिर्फ एक होना चाहिए तो उत्तर मुखी सर्वश्रेष्ठ एवं पूर्व मुखी भी अच्छा होता है। मुख्य द्वार की चौखट चार लकड़ी की एवं दरवाजा दो पल्लों का होना चाहिए।


·     प्लाट की लंबार्इ उत्तर-दक्षिण दिशा की बजाय पूर्व-पशिचम दिशा में अधिक होना शुभ माना जाता है।


·      बिलिडंग या फैक्ट्री का निर्माण करते समय दक्षिण या उत्तर-दिशा की ओर अधिक खाली स्थान छोड़ना अच्छा नहीं माना जाता है।


·      पूजागृह रसोर्इ और शयन कक्ष में कदापि नहीं होना चाहिए।


·      पूजाघर में पीला या सफेद रंग करवाना ठीक रहता ह।


·      पूजाघर के ऊपर पिरामिड होना चाहिए साथ ही ध्यान रखना चाहिए कि मंदिर के ऊपर कोर्इ समान नहीं रखा हो।


·     पूजाघर में दो शिवलिंग, दो शालिग्राम, दो शंख, तीन दुर्गा और तीन गणेश रखने का शास्त्रों में निषेध है।


·     आराधना स्थल में देवी-देवताओं की प्रतिमा या मूर्तिया एक-दूसरे के आमने-सामने होने चाहिए।


·     बहुमंजिले मकान में पूजा मंदिर निर्माण भूतल पर करें।


·     बड़ा गोल आर्इना मकान की छत पर ऐसे लगाएं कि मकान की संपूर्ण छाया उसमें दिखार्इ देती रहे।


·     यदि मकान के पास में फैक्टरी का धुआं निकलता हो, तो एग्जास्ट पंखा या वृक्ष लगा लें।


·    यदि मकान में बीम ऐसी जगह हो, जिसके कारण आप मानसिक तनाव महसूस करते हों तो बीम से उत्पन्न होने वाले दोषों से बचाव के लिए यह उपाय अपना सकते हैं।


·      घर बनाने की पहल करने समय से ही वास्तु का ध्यान रखा जाता है, लेकिन फिर भी कुछ न कुछ त्रुटि रह जाती हे, इसलिए गृह प्रवेश करने से पहले वास्तुशांति पूजन जरूर करवा लेना चाहिए, यह पूजा भूमि पूजन के समय किया जा सकता है या फिर नींव पूजन के समय या गृह निर्माण के आरंभ में या गृह प्रवेश की पूजन के आरंभ में या गृह प्रवेश की पूजन के समय या फिर चहारदिवारी में गेट निर्माण के समय वास्तुशांति की पूजा की जा सकती है। विभिन्न राशियों में सूर्य की सिथति के अनुसार ही वास्तु शांति पूजन की दिशा तय की जाती है। सूर्य जब सिंह, कन्या, तुला राशि में हो तो पूजन दक्षिण-पशिचम कोण में, वृशिचक, धनु मकर राशि में हो तो वायव्य कोण (उतर-पशिचम) में, कुंभ, मीन, मेष में हो तो र्इशान कोण (उतर-पूर्व) एवं वृष, मिथुन, कर्क राशि में हो तो आग्नेय कोण (दक्षिण पूर्व) में वास्तुशांति पूजा करना चाहिए। घर के अंदर अलमीरा को उस स्थान पर रखना चाहिए जिससे कि अलमीरा उत्तर दिशा की ओर या पूर्व दिशा की ओर खुले खोलने वाले का चेहरा दक्षिण दिशा या पशिचम दिशा की ओर होना चाहिए। तिकोणा जमीन घर बनाने के लिए सही नहीं होता है। इससे धन हानि व मृत्यु तुल्य कष्ट मिलता है, एक दूसरे प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया कि बेडरूम दक्षिण पूर्व होने पर दक्षिण दीवार पर रेड पायरन लगा देना चाहिए, ओर किचरन दक्षिण पशिचम हो तो गणपति बागवा किचन के दरवाजे के ऊपर एवं राहू यंत्र शनिवार को पूजा स्थान पर रखना लाभकारी होता है।  लगातार कर्ज में डूबते जाना और बार-बार नौकरी छूटना संबंधी सवाल के प्रवेश द्वार के ऊपर बुध यंत्र लगा देने एवं साथ ही पूजा स्थान पर कुबेर यंत्र रखने से लाभ होता है।  बेडरूम में मिरर (आइना) को सोते समय हमेशा ढक कर रखें। आइना को हमेशा उतर या पूर्व दिशा की दीवार पर लगाना चाहिए, अगर किसी दूसरे दीवार पर लगा रहे हैं, तो उसके सामने वाली दीवार में बागवा मिरर लगा देना चाहिए।


·     गणेश जी की स्थापना भवन के द्वार के उपर एवं र्इशन कोण में करना चाहिए, कोर्इ भी व्यकित से जिसका मन सिथर नहीं रहता हो, उसे दोष को दूर करने के लिए भवन के मुख्य द्वार प 11 अंगुल आकार की गणेश की प्रतिमा लगानी चाहिए, ध्यान रहे भगवान गणेश की प्रतिमा बैठी हुर्इ होनी चाहि, यदि घर में पूजा करने के लिए भगवान गणेश की प्रतिमा रखनी हो, तो वह हमेशा शयन अथवा बैठी हुर्इ मुद्रा में होनी चाहि।


·     शिक्षण प्रयोजन से रखने पर प्रतिमा अथवा तसवीर नृत्य की मुद्रा में होनी चाहिए, गणेश की प्रतिमा का मुख नैऋत्य मुखी हो, तो इष्टलाभ की प्रापित होती है। सर्व मंगल का कामना की चाह रखने वालों के लि सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है।


·      प्रवेश द्वार का किसी भी मकान के लिए विशेष महत्व होता है। यह मकान में रहने वालें व्यक्त की प्रगति, उन्नति के साथ उसकी अवनति के लिए भी उत्तरदायी होती है। अत: मकान निर्माण से पूर्व प्रवेश द्वार के दिशा निर्धारण पर ध्यान देना अनिवार्य होता है।  पूर्वी द्वार सबसे उत्तम माना जाता है। इसके विजय द्वार भी कहते हैं। पशिचम द्वारा मध्म फलदायी होता है।, इसे मकर द्वार के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर द्वार को कुबेर द्वार के नाम से जाना जाता है। यह भी फलदायी ही होता है। जहां तक संभव हो, दक्षिण द्वार से बचना चाहिए, यह सही नहीं माना जाता है।, उत्तर-पूर्व का द्वारा ऐश्वर्य, लाभ एवं वंश वृद्धि कराने वाला होता है।, दक्षिण-पूर्व का द्वार स्त्री रोग, अगिन भय एवं आत्मघात की संभावना वाला माना जाता है। दक्षिण-पशिचम का द्वार आकसिमक मृत्यु, प्रेम बाधा के साथ व्यावसायिक हानि कराने वाला होता है, इसे अत्यंत अशुभ माना जाता है, वहीं उत्तर-पशिचम का द्वार मानिकस अशांति एवं धनहानि करता है। इसके अतिरिक्त दरवाजा किसी भी परिसिथति में तिरछा नहीं होना चाहिए। यह नाकारात्मक उर्ज बढ़ाती है। यदि ऐसा हो और बदलाव संभव न हो सके, तो दरवाजे के दोरों ओर क्रिस्टल बाल ओर दरवाजे के मध्यम में मेटल का स्वातिमक पिरामिड यंत्र लगा दें, उक्त बातों के अलावा कुछ बातों पर ध्यान दें, किसी भी मकान में चमगादड़ का मंडराना,ख् लटकरना एवं मरना घर के मुखिया के लिए अनिष्ट सिद्ध होता है। यह मृत्यु अथवा उसके तुल्य कष्ट देता है। जिस घर में गाय अपना दूध स्वयं पीती हो, तो वह गुहस्वामी को कर्जदार बनाती है। भवन में देव प्रतिमा का चटकना अथवा ख्ांडित होना घर में निवास करने वाले को मृत्यु समान कष्ट देती है।





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